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कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
पद
तन में ख़िर्क़ः पहन रिया का घर पर शैख़ कहाये
तन में ख़िर्क: पहन रिया का घर पर शैख़ कहायेवा'ज़ नसीहत कर सभों को जाल में अपने लाए
संत कवि दिलदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़े-कस्रत बर रुख़-ए-वह्दत नक़ाब अंदाख़्ती
कीस्त दर आ'लम कि दर दिल तालिब-ए-दीदार नीस्ततुख़्म-ए-इ’श्क़ अंदर दिल-ए-हर-शैख़-ओ-शाब अंदाख़्ती
फ़ज़ीहत शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मंतिक़-उत-तैर - हिकायत-ए-शैख़-बसरा बर-सर-ए-गोर-ए-मुर्दा
दफ़्न मी-कर्दंद मर्दे रा ब-ख़ाकशैख़-ए-बसरी शुद ब-पेश-ए-आँ मग़ाक
शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार
नज़्म
दर बयान-ए-उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती
रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती काउर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ऐ शैख़ क़दम रखियो न इस राह में ज़िन्हारहै सुब्हः-शिकन रिश्तः-ए-ज़ुन्नार-ए-मोहब्बत
बेदार मीर मोहम्मद
ग़ज़ल
देखूँ जो तुझे ख़्वाब में मैं ऐ मह-ए-कनआँऐसा तो मिरा ताला-ए-बेदार कहाँ है
अ’ब्दुर्रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तकचराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है