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ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अमीर-ऊल-मोमेनीन सिद्दीक़-ए-अकबर
अमीर-ऊल-मोमिनीन सिद्दीक़-ए-अकबरइमाम-उल-मुस्लिमीन सिद्दीक़-ए-अकबर
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रू-ए-आसानी न-बीनद मतलब-ए-दुश्वार-ए-मा
वह्दत-ए-इंशाएम अज़ बस क़ौल-ओ-फे़अल-ए-मा यकीस्तअज़ ख़मोशी मी-तरावद चूँ क़लम गुफ़्तार-ए-मा
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
पढ़ लेता हूँ हर अम्र-ए-मुक़द्दर को मैं दिल परजैसे कि सू-ए-लौह-ओ-क़लम देख रहा हूँ
हामिद वारसी गुजराती
मनक़बत-ना'त
मेहर से ममलू रेशा रेशा ने'मत 'अमीर' अपना है पेशःदर्द हमेशः रहता है अक्सर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
शाख़-ए-गुल छेड़ी है किस ने क्यूँ क़लम करता है हाथदीदः-ए-ओ-दानिस्तः अब बोहतान मत हम पर लगा
शाह नसीर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हिकायत-ए-मजनूँ
रेग काग़ज़ क़द्र वंगुश्ताँ क़लममी-नवीसद नामः बह्र-ए-कस रक़म