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ग़ज़ल
सुनने वालों के दिलों को बख़्श दे नूर-ए-यक़ीनमेरे क़िस्से में तुम्हारी रौशनी ऐसी तो हो
सादिक़ देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गुफ़्तार दर बाज़ जुस्तन-ए-दिल
ख़़ाक-ए-तब आरिन्द: ब-ताबूत बख़्शआतिश-ए-ताबिंद: ब-याक़ूत बख़्श
निज़ामी गंजवी
फ़ारसी कलाम
कामे ज़े लब ब-बख़्श कि उ’श्शाक़-ए-खस्त: रासद ख़ार ख़ार दर जिगर उफ़्तादःजाँ रुतब
मुल्ला जामी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बे-ख़बर ब-कोश कि साहब ख़बर शवी
ख़्वाब-ओ-ख़ुरत ज़े-मर्तब:-ए-ख़्वेश दूर कर्दअंगह रसी बख़्श कि बे-ख़्वाब-ओ-ख़ुर शवी
हाफ़िज़
मनक़बत-ना'त
जिसे देखा मोहब्बत बख़्श दी तक़दीर चमका दीवो ले कर रू-ए-ज़ेबा जल्वः-ए-अर्श-ए-बरीं आए
हैरत शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दर सीन: दारम कोह-ए-ग़म दानद अगर यार ईं क़दर
बेचारः-ई अज़ दस्त शुद आख़िर चे कम गर्दद ज़े-तूगर बाज़ गोई ऐ सबा दर हज़रत-ए-यार ईं क़दर
अमीर ख़ुसरौ
नज़्म
मदीह-ए-ख़ैरुल-मुरसलीन
दूर पहुँची लब-ए-जाँ-बख़्श नबी की शोहरतसुन ज़रा कहते हैं क्या हज़रत-ए-ईसा बादल
मोहसिन काकोरवी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
मनक़बत-ना'त
दिल-ए-बेताब अपना किस क़दर मुज़्तर है फ़ुर्क़त मेंहमारी जान भी जाएगी इक दिन याद-ए-हज़रत में
अहमद वाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ईं क़सीदः हम नतीजः-ए-आँ-ख़ाक-ए-पाक सर्खस़ अस्त
सिदक़-ए-मा रा सुब्ह-ए-काज़िब सोख़्त मा रा सिदक़ बख़्शपा-ए-मा दर तीन-ए-लाज़िब मानद मा रा दस्त-गीर
हकीम सनाई
बैत
अ’हद-ए-रफ्ता की खुदाई किस क़दर महँगी पड़ी
अ’हद-ए-रफ्ता की खुदाई किस क़दर महँगी पड़ीजिस जगह ऊँची इ’मारत थी गढ़ा सा रह गया
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
तुम्हारी शक्ल पहले भी बहुत ही ख़ूबसूरत थीपरस्तिश करते करते बख़्श दी रख़शंदगी हम ने
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
इस क़दर रोया है कोई हिज्र-ए-जानाँ में 'अ’ज़ीज़'अश्क बन कर आँख में ख़ून-ए-जिगर आ ही गया
अज़ीज़ वारसी देहलवी
दकनी सूफ़ी काव्य
दुर्रूल-मजालिस
क़ुबूलिया रब पयम्बर की ज़बानीकरूँगा बख़्श ज़ाहिर सब निहानी