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मनक़बत-ना'त
वो जिस की ज़ात आली नाज़िश-ए-कौनैन है 'क़ैसर'उसी फ़ख़्रुल-रुसुल ख़ैरुल-बशर की बात करते हैं
क़ैसर वारसी
रूबाई
जो सुख़न-दान-ए-फ़साहत हैं उन्हें मालूम हैजैसा फ़ैज़-ए-हज़रत-ए-यज़्दानी-ए-मरहूम है
मोहम्मद अकबर वारसी
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आँ सुख़न गुफ़्तन-ए-तू हस्त हुनूज़म दर गोश
आँ सुख़न गुफ़्तन-ए-तू हस्त हुनूज़म दर गोशवाँ शकर-ख़ंदःए शीरीन-ए-तू अज़ चश्म:-ए-नोश
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुद
सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुदगिरफ़तम ना-गहाँ नामश हदीसम दर दहाँ गुम शुद
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गईआ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ कि ब-हंगाम-ए-दर्द राहत-ए-जानी मरा
दर रका'अत-ए-नमाज़ हस्त ख़ाल-ए-तू शहवाजिब व लाज़िम चुनानक सब'अ'-ए-मसानी मरा
मौलाना रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तन-ए-पाकत कि ज़ेर-ए-पैरहन अस्त
गुफ़्त: ऐ तर्क-ए-तू न-ख़्वाहम गुफ़्ततुर्क-ए-मन गो चे जा-ए-ईं सुख़न अस्त
अमीर ख़ुसरौ
रूबाई
भड़का दिया नग़्मों ने तिरे अहल-ए-सुख़न को'अकबर' है कि बुलबुल है फ़साहत के चमन का
मोहम्मद अकबर वारसी
ग़ज़ल
अहक़र बिहारी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ आँ कि तुरा दर तूई नीस्त तसर्रुफ़
ऐ आँ कि तुरा दर तूई नीस्त तसर्रुफ़आँ बेह कि न-गोई तू सुख़न राज़-ए--तसव्वुफ़
हकीम सनाई
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा रूह-अफ़्ज़ा और रिज़वान-शाह
अव्वल नाम हक़ का ले बोलूँ सुख़नबूँद उस की तौहीद खोलूँ सुख़न
फायज
फ़ारसी कलाम
दोश चश्म-ए-जानम अज़ दीदार-ए-शह पुर-नूर बूदमुतरिब-ए-मा ज़ोहरः-ओ-साक़ी-ए-मजलिस हूर बूद