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गूजरी सूफ़ी काव्य
जिकरी ब-शौक़ दिली न जिगरी
'महमूद' साईं पर गाजी रेदुख औरों कहता लाजी रे
क़ाज़ी महमूद दरियाई
गूजरी सूफ़ी काव्य
साहब मेरा खड़ा बकोनाँ
दाख तजी लिंम्बुली खावेआखी मियाँ-'महमूद' सुनो मेरी मीत
क़ाज़ी महमूद दरियाई
गूजरी सूफ़ी काव्य
दर-पर्दा ओसारे
मैं भव में जनम गँवाइयाँ अब सो तुझ सूँ साँधेबिनवा 'महमूद' बिंती मन कर रे साई
क़ाज़ी महमूद दरियाई
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
कनूँ कि दर चमन आमद गुल अज़ अ’दम ब-वजूद
बयार जाम-ए-लबालब ब-याद-ए-आसिफ़-ए-अ'ह्दवज़ीर-ए-मुल्क-ए-सुलैमाँ इ'माद-ए-दीं महमूद
हाफ़िज़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अज़ आँ गुलशन गिरफ़्तम शम्मः-ई बाज़
बनाम-ए-ख़्वेश कर्दम ख़त्म-ओ-पायाँइलाही आक़िबत महमूद गर्दां
मह्मूद शबिस्तरी
फ़ारसी कलाम
लिबास-ए-बुल-बशर पोशीदः मस्जूद-ए-मल्क गश्तमब-तस्वीर-ए-मोहम्मद हामिद-ओ-महमूद बूद अस्तम
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
गूजरी सूफ़ी काव्य
उक़्दा दर-पर्द: रामकली
जीव अधीरा मेरड़ा वाला अत तूँ बार न लगाए'महमूद' संदेशडा पहोंचे पिउ लग जाए
क़ाज़ी महमूद दरियाई
दोहा
महमूद भूखाँ भोजन दीजें, तरसा दीजे पानी।
महमूद भूखाँ भोजन दीजें, तरसा दीजे पानी।ऊँचा सेंती नम नम चलिये, मोटम न मन में आनी।।
क़ाज़ी महमूद दरियाई
शबद
महमद महमद न कर काजी महमद का तो विषम विचारूँ
महमद महमद न कर काजी महमद का तो विषम विचारूँमहमद हाथ करद जो होती लोहै घड़ी न सारूं
जाम्भोजी
दोहा
सवार उठ लीजे अपने अल्लाह का नांव।
सवार उठ लीजे अपने अल्लाह का नांव।पाँचों वक्त नमाज़ गुज़ारों दायम पढ़ो कुरान।।
क़ाज़ी महमूद दरियाई
दोहा
कलमा शहादत तिल न बिसारो जिसथी छूटो निदान।
कलमा शहादत तिल न बिसारो जिसथी छूटो निदान।महमूद मुख थी तिल न बिसरे अपने अल्लाह का नाम।।