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मनक़बत-ना'त
फिर चला 'अकबर' मदीने को फ़क़ीर अल्लाह काफिर दिखाया ख़ूबी-ए-क़िस्मत ने लुत्फ़ इस राह का
शाह अकबर दानापुरी
राग आधारित पद
भैरवी खेमटा, यत- मतलबी कौन कतेनी मागे हानू ईश्कते हाल।।
मतलबी कौन कतेनी मागे हानू ईश्कते हाल।।केतने के हा घायला मायल फिरूं दिवानी।
फ़क़ीर हुसैन शाह
राग आधारित पद
भैरवी खेमटा- चरखा ला ते मोरीरे ते मोरी नीद गमाई।
चरखा ला ते मोरी रे ते मोरी नीद गमाई।कातत कातत सब निशि बीती इस्कदी तार लगाई।।
फ़क़ीर हुसैन शाह
पद
पस्तो - मजनूँ मियाँ फ़क़ीर लैलै लगन में हुआ
मजनूँ मियाँ फ़क़ीर लैलै लगन में हुआ'तुलसी' बिना मिलाप हाय हाय करि मुवा
तुलसी साहेब हाथरस वाले
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शाह अस्त हुसैन व बादशाह अस्त हुसैन
शाह अस्त हुसैन व बादशाह अस्त हुसैनदीन अस्त हुसैन ओ दीन-ए-पनाह अस्त हुसैन
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
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कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
नज़्म
बाबा गुरू नानक
पेशवा रहबर गुरु दरवेश आ'मिल और फ़क़ीरतुझ को हासिल थे ये रुत्बे ऐ अमीरों के अमीर
अज़ीज़ वारसी देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मबाद कस चू मन-ए-ख़स्त: मुब्तला-ए-फ़िराक़
ग़रीब-ओ-आ'शिक़-ओ-बे-दिल फ़क़ीर-ओ-सरगर्दाँकशीदः मेहनत-ए-अय्याम-ओ-दर्द-हा-ए-फ़िराक़
हाफ़िज़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-ख़ूबी चू गुल बे-नज़ीर आमदी
ब-गीर आंचे मी-ख़्वाही 'अकबर' ब-गीरब-दरगाह-ए-'वारिस' फ़क़ीर आमदी
मोहम्मद अकबर वारसी
ग़ज़ल
रिंदों के लिए मय-ख़ाने की हर रस्म इबादत होती हैदिलबर को बिठा कर पेश-ए-नज़र चेहरे की तिलावत होती है
फ़क़ीर क़ादरी
कलाम
जैंदे अंदर इश्क़ दी रत्ती बिना शराबों खीवे हूनाम फ़क़ीर तिन्हां दा 'बाहू' क़बर जिन्हाँ दी जीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
ग़ज़ल
कहीं अनल-हक़ वो आप बोला फ़क़ीर बन कर ये भेद खोलाकहीं बना है वो आप भोला ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
कलाम
इश्क़ मुश्क न छुप्पे रैहंदे ज़ाहर थीन उथाईं हूनाम फ़क़ीर तनहाँ दा 'बाहू' जिन्हाँ ला-मकानी जाईंं हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू