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दोहा
विनय मलिका - कर्म फाँस छूटै नहीं थकित भयो बल मोर
कर्म फाँस छूटै नहीं थकित भयो बल मोरअब की बेर उबारि लो ठाकुर बंदीछोर
दया बाई
दोहा
विनय मलिका - काहू बल अप देह को काहू राजहि मान
काहू बल अप देह को काहू राजहि मानमोहिं भरोसो तेरही दीनबंधु भगवान
दया बाई
दोहा
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेष
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेषसो अर्जुन बैराट घर रहे नारि के भेष
रहीम
दोहा
मुँह दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीस
मुँह दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीसपास रहे हर न मिले इस को बिसवे बीस
बुल्हे शाह
ग़ज़ल
बेल में बूटे में फल में पत्तियों में फूल मेंहर चमन में उस का मज़हर है कहाँ मिलता नहीं
मोहम्मद अकबर वारसी
दोहा
योमिनूना बिल-ग़ैब कूँ आँख मूँद मन पील
योमिनूना बिल-ग़ैब कूँ आँख मूँद मन पीलसीखो गुरु सों ये जुगत आँख-मिचौनी खेल
बरकतुल्लाह पेमी
दोहा
रहिमन करि सम बल नहीं मानत प्रभु की धाक
रहिमन करि सम बल नहीं मानत प्रभु की धाकदाँत दिखावत दीन ह्वै चलत घिसावत नाक
रहीम
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ हमः इंसाफ़-जूयाँ बंदः-ए-बेदाद तू
बिल-फ़ज़ूलाँ रा सू-ए-तू राह न-बूद ता बुवदकिब्रिया दर बादबाँ राएगाँ आबाद तू
हकीम सनाई
नज़्म
जन्म कनहैया-जी
सुख मंडल में ये धूम मची और हर नेगी और जोगी भीकुछ नाचें भाँड भीगते भी कुछ हिजड़े पावें बेल बड़ी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बुतान-ए-हश्र ताज़ा रँग भर दीं दाग़-ए-इस्याँ मेंमज़ा दे जाए मेरा दाग़-ए-इस्याँ मेरे दामाँ में