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कुंडलिया
भेद - उल्टा कूवा गगन में तिस में जरै चराग़
भेद - उल्टा कूवा गगन में तिस में जरै चराग़तिस में जरै चराग़ बिना रोग़न बिन बाती
पलटू साहेब
नज़्म
मीलाद-उन-नबी
मुबारक हो कि दुनिया में शह-ए-दुनिया-ओ-दीं आएचराग़-ए-तूर आए ज़ीनत-ए-अर्श-ए-बरीं आए
वासिफ़ अली वासिफ़
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ग़म्ज़: ज़न कि तीर-ए-जफ़ा दर कमान-ए-तुस्त
ऐ ग़म्ज़: ज़न कि तीर-ए-जफ़ा दर कमान-ए-तुस्तआहिस्तः ज़न कि गर्दन-ए-मा दर इ’नान-ए-तुस्त
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी कलाम
ऐ शाफ़े-ए'-तर दामनाँ-ओ- वै चारा-ए-दर्द-ए-निहाँजान-ए-दिल-ओ-रूह-ए-रवाँ या'नी शह-ए-अ'र्श आस्ताँ
अहमद रज़ा ख़ाँ
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़े-कस्रत बर रुख़-ए-वह्दत नक़ाब अंदाख़्ती
ज़ाँ तजल्लाए सिफ़ात-ए-तू-कि शुद बर कोह-ए-तूरमूसा-ए-इ’मरान रा दर इज़्तिराब अंदाख़्ती
फ़ज़ीहत शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ नसीम-ए-सहर आराम-गह-ए-यार कुजास्त
शब-ए-तार-अस्त -ओ- रह-ए-वादि-ए-ऐमन दर-पेशआतिश-ए-तूर कुजा मौअ'द-ए-दीदार कुजास्त
हाफ़िज़
ग़ज़ल
कामिल शत्तारी
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
इत्तिफ़ाक़ से एक तरफ़ जो देखा तो एक दूकान है, उसमें दो लोहे के पिंजरे लटके
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
वो रुख़-ए-रौशन है शम्अ' तूर-क़द है नख़्ल-ए-तूरनूर के दो क़ुमक़ुमे ताबाँ हैं नख़्ल-ए-तूर पर
इब्राहीम 'आजिज़'
गूजरी सूफ़ी काव्य
दिल के घर मांही चराग़-ए-हुब्ब जला
दिल के घर मांही चराग़-ए-हुब्ब जलामेरे पिउ कूँ जान अपनी सहला