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मनक़बत-ना'त
शाहिद-ए-हक़ आ’रिफ़-ए-फ़ख़्र-ए-ज़मन की बज़्म हैहोशियार ऐ नुत्क़ ये 'ख़्वाजा-हसन' की बज़्म है
अज़ीज़ वारसी देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुद
सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुदगिरफ़तम ना-गहाँ नामश हदीसम दर दहाँ गुम शुद
अमीर ख़ुसरौ
रूबाई
जो सुख़न-दान-ए-फ़साहत हैं उन्हें मालूम हैजैसा फ़ैज़-ए-हज़रत-ए-यज़्दानी-ए-मरहूम है
मोहम्मद अकबर वारसी
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ग़ज़ल
रियाज़ ख़ैराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आँ सुख़न गुफ़्तन-ए-तू हस्त हुनूज़म दर गोश
आँ सुख़न गुफ़्तन-ए-तू हस्त हुनूज़म दर गोशवाँ शकर-ख़ंदःए शीरीन-ए-तू अज़ चश्म:-ए-नोश
अमीर ख़ुसरौ
रूबाई
भड़का दिया नग़्मों ने तिरे अहल-ए-सुख़न को'अकबर' है कि बुलबुल है फ़साहत के चमन का
मोहम्मद अकबर वारसी
ग़ज़ल
शे'र कहना गरचे छोड़ा तू ने ऐ 'बेदार' आजकह ग़ज़ल ऐसी कि हो बज़्म-ए-सुख़न-संजाँ में धूम
बेदार मीर मोहम्मद
ग़ज़ल
अहक़र बिहारी
बैत
सुख़न की दाद ख़ुदा से वसूल करती है
सुख़न की दाद ख़ुदा से वसूल करती हैज़बान आज सना-ए-रसूल करती है
मुज़फ़्फ़र वारसी
नज़्म
हुआ फिर शीअः-ओ-सुन्नी में झगड़ा
हुआ दंगा ये शहर लखनऊ मेंन आए फ़र्क़ क्यूँ कर आबरू में