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शा मुजीबुल्ला का चौखट है सज्दा-गाह जहाँ का
शा मुजीबुल्ला का चौखट है सज्दा-गाह जहाँ कावस्फ़ है उस का देने वाला फ़रहत रूह-ओ-रवाँ का
संत कवि दिलदार
बसंत
नाज़-ओ-अदा से झूमना ख़्वाजा की चौखट चूमनादेखो 'नियाज़' इस रंग में कैसी सुहाती है बसंत
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
बसंत
नाज़-ओ-अदा से झूमना ख़्वाजा की चौखट चूमनादेखो 'नियाज़' इस रंग में कैसी सुहाती है बसंत
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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गर आशिक़ सादिक़ है उस का मत उल्फ़त तू ग़ैर से जोड़
गर झिड़के या मार निकाले चौखट को उस के मत छोड़ऐ 'दिलदार' अगर है आक़िल ग़ैर की प्रीत को दिल से कोड़
संत कवि दिलदार
ग़ज़ल
'काविश' का यही है अफ़्सानः है नाम-ए-अली का दीवानादुनिया को अली की चौखट से जीने के सहारे मिलते हैं
अब्दुलहादी काविश
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हिकायत-ए-मोबिद-ए-हिन्दु कि मा'रिफ़त याफ़्त
कोश कजीं ख़्वाजः ग़ुलामी रहीता चू 'निज़ामी' ज़े-निज़ामी रही
निज़ामी गंजवी
ग़ज़ल
बस-कि हूँ दिल-तंग ख़ुश आता है सहरा-ए-क़फ़सबुलबुल-ए-बे-बाल-ओ-पर रखती है सौदा-ए-क़फ़स
शाह रुकनुद्दीन 'इश्क़'
मनक़बत-ना'त
इसी का फ़ैज़ है दुनिया में ये वो चौखट हैजो कुछ किसी को मिला वो मिला मदीने से