Sufinama
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Sundardas Chhote

1596 | Dausa, India

Saakhi of Sundardas Chhote

प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।

सुन्दर स्वाद प्रीति बिन, भूख बिना ज्यौं अन्न।।

तीन गुननि की वृत्ति मंहि, है थिर चंचल अंग।

ज्यौं प्रतिबिबंहि देषिये, हीलत जल के संग।।

उहै ब्रह्म गुरु संत उह, बस्तु विराजत येक।

बचन बिलास विभाग श्रम, बन्दन भाव बिबेक।।

अपणां सारा कछु नहीं, डोरी हरि कै हाथ।

सुन्दर डोलैं बांदरा, बाजीगर कै साथ।।

तमगुण रजगुण सत्वगुण, तिनकौ रचित शरीर।

नित्य मुक्त यह आतमा, भ्रमते मानत सीर।।

सुन्दर बंधै देह सौं, तौ यह देह निषिद्ध

जौ याकी ममता तजै, तौ याही में सिद्धि।।

पाप पुण्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाउं।

सुन्दर सब कछु मानिले, ताहीतें मन नांउ।।

जौ यह उसेक ह्वै रहै, तौ वह इसका होय।

सुन्दर बातौं मिलै, जब लग आप खोय।।

जब मन देषै जगत कौं, जगत रूप ह्वै जाइ।

सुन्दर देषैं ब्रह्मकौं, तन मन ब्रह्म अबाइ।।

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