Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
noImage

Shivdayal Singh

Saakhi of Shivdayal Singh

मोटे जब लग जायं नहिं, झीने कैसे जाय।

ताते सबको चाहिये, नित गुरु भक्ति कमाय।।

गुप्त रूप जहां धारिया, राधास्वामी नाम।

बिना मेहर नहिं पावई, जहां कोई बिसराम।।

सुरत रूप अति अचरजी, वर्णन किया जाय

देह रूप मिथ्या तजा, सत्तरूप हो जाय।।

संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।

और मते सब काल के, योंही धूल उड़ाहिं।।

बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।

और कोई लख सके, शोभा अगम अपार।।

मोटे बन्धन जगत के, गुरु भक्ति से काट।

झीने बन्धन चित्त के, कटें नाम परताप।।

Recitation

Speak Now