Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
noImage

Sadhu Nishchaldas

Saakhi of Sadhu Nishchaldas

सत्यबंध की ज्ञान तैं, नहीं निवृत्ति सयुक्त।

नित्य कर्म संतत करैं, भयो चहै जो मुक्त ।।

ब्रह्मरूप अहि ब्रह्मवित, ताकी बानी बेद।

भाषा अथवा संस्कृत, करत भेद भ्रम छेद।।

अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।

बिभु नभ सम सो ब्रह्म है, नहिं नेरे नहिं दूर।।

भ्रमन करत ज्यूं पवन तैं, सूको पीपर पात।

शेष कर्म प्रारब्ध तै, क्रिया करत दरसात।।

Recitation

Speak Now