Sufinama
noImage

Rasnidhi

Datia, India

Dohe of Rasnidhi

20
Favorite

SORT BY

अद्भुत गति यह प्रेम की, बैनन कही जाइ।

दरस भूख लागे दृगन, भूखहि देह भगाइ।।

कहनावत मै यह सुनी, पोषत तनु को नेह।

नेह लगाये अब लगी, सूखन सिगरी देह।।

अद्भुत गति यह प्रेम की, लखौ सनेही आइ।

जुरै कहू टूटै कहूं, कहूं गाठि पर जाइ।।

सुन्दर जोबन रूप जो, बसुधा मे समाइ।

दृग तारन तिल बिच तिन्हें, नेही धरत लुकाइ।।

बोलन चितवन चलन में, सहज जनाई देत।

छिपत चतुरई कर कहूं, अरे हिये को हेत।।

यह बूझन को नैन ये, लग लग कानन जात।

काहू के मुख तुम सुनी, पिय आवन की बात।।

रूप नगर बस मदन नृप, दृग जासूस लगाइ।

नहनि मन कौ भेद उन, लीनौ तुरत मंगाइ।।

पसु पच्छीहु जानही, अपनी अपनी पीर।

तब सुजान जानौं तुम्है, जब जानौ पर पीर।।

अद्भुत बात सनेह की, सुनौ सनेही आइ।

जाकी सुध आवै हिये, सबही सुध बुध जाइ।।

न्यारौ पैड़ौ प्रेम कौ, सहसा धरौ पाव।

सिर के पैड़े भावते, चलौ जाय तौ जाव।।

आये इसक लपेट मे, सागी चसम चपेट।

सोई आया जगत मे, और भरे सब पेट ।।

प्रेम नगर में दृग बया, नोखे प्रगटे आइ।

दो मन को करि एक मन, भाव देत ठहराइ।।

चसमन चसमा प्रेम कौ, पहिले लेहु लगाइ।

सुन्दर मुख वह मीत को, तब अवलोकौ जाइ।।

मन गयंद छवि मद छके, तोर जंजीरन जात।

हित के झीने तार सों, सहजै ही बंधि जात।।

सरस रूप कौ भार पल, सहि सकै सुकुमार।

याही तै ये पलक जनु, झुकि आवैं हर बार।।

जिहि मग दौरत निरदई, तेरे नैन कजाक।

तिहि मग फिरत सनेहिया, किये गरेबां चाक।।

चतुर चितेरे तुव सबी, लिखत हिय ठहराइ।

कलम छुवत कर आंगुरी, कटी कटाछन जाइ।।

लेउ मजनू गोर ढिग, कोऊ लै लै नाम।

दरदवन्त कौ नेक तौ, लैन देउ बिसराम।।

हित करियत यहि भांति सों, मिलियत है वहि भांत।

छीर नीर तै पूछ लै, हित करिबे की बात।।

रसनिधि वाको कहते हैं, याही ते करतार।

रहत निरन्तर जगत कौ, वाही के कर तार।।

सुनियत मीननि मुखलगै, बंसी अबै सुजान।

तेरी ये बंसी लगै, मीनकेत कौ बान।।

सज्जन पास कहु अरे, ये अनसमझी बात।

मोम रदन कहुं लोह के, चना चबाये जात।।

उड़ौ फिरत जो तूल सम, जहां तहां बेकाम।

ऐसे हरुये कौ धरयो, कहा जान मन नाम।।

कञ्चन से तन में यहां, भरो सुहाग बनाइ।

विरह आंच वापै कहो, सहो कौन विधि जाइ।।

Recitation

Speak Now