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Dr. Afroz Taj

Professor at the University of North Carolina (USA), Active in Hindi-Urdu poetry, writing and Theater.

Professor at the University of North Carolina (USA), Active in Hindi-Urdu poetry, writing and Theater.

Dohe of Dr. Afroz Taj

बाँसुरिया के भाग पर, अचरज करता क्यूँ

मन में छेद छिदाए, तब लगी पिया के मूँ

अरब देश क्या पूछिए, जैसे एक चिराग़

नीचे-नीचे तेल है, ऊपर-ऊपर आग

ज़्यादा सुंदर मुखन पे, होना बे-ताब

उतने काँटे झार में, जितने फूल गुलाब

जीव दया से देस के, भरे पड़े बाज़ार

बच्चे झूठन चाटते, कुत्ते घूमें कार

नेत्रदान को पाय के, अंधा ख़ुशी मनाय

चीखा दुनिया देख के मोहे अंधा कोई बनाय

जो भी जितना रोए है, उतना ही मुस्काए

पौधा ही सींचिए, फल कहाँ से आए

अब क्या चला है पोंछने, तू निर्धन के नीर

एक बना तू बादशाह, लाखों बने फ़क़ीर

उल्टी गंगा राम की, कह दूँ साँची बात

मुर्दों को है ताज महल, ज़िंदों को फ़ुटपात

पाखी बैठा पींजरा, मन ही मन में शाद

सारी दुनिया जेल में, मैं ही इक आज़ाद

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