Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
noImage

Baba Lal

Saakhi of Baba Lal

जिह की आशा कछु नहीं, आतम राखै शून्य।

तिंहकी नहिं कुछ भर्मणा, लागै पाप पुण्य।।

देहा भीतर श्वास है, श्वासा भीतर जीव।

जीवे भीतर वासना, किस विध पाइये पीव।।

आशा विषय विकार की, बांध्या जग संसार।

लख चौरासी फेर में, भरमत बारंबार।।

जाके अंतर बासना, बाहर धारे ध्यान।

तिंह को गोविंद ना मिलै, अंत होत है हान।।

Recitation

Speak Now