कहों क्या हाल ज़ाहिद वादी-ए-तैबा की नुज़हत का
कहों क्या हाल ज़ाहिद वादी-ए-तैबा की नुज़हत का
कि है ख़ुल्द-ए-बरीं छोटा सा टुकड़ा मेरी जन्नत का
बुलाते हैं उसी को जिस की पगड़ी वो बनाते हैं
कमर बंधना दयार तैबा को खुलना है क़िस्मत का
न कर रुस्वा-ए-महशर वास्ता महबूब का या-रब
ये मुजरिम दूर से आया है सुन कर नाम रहमत का
मुरादें माँगने से पहले मिलती हैं मदीना में
हुजूम-ए-जूद ने रोका है बढ़ना दस्त-ए-हाजत का
शब-ए-असरा तिरे जल्वे ने कुछ ऐसा समाँ बाँधा
कि अब तक 'अर्श आ'ज़म मुंतज़िर मुंतज़िर तैरी तेरी का का
यहाँ के डूबते दम में उधर जा कर उभरते हैं
किनारा एक है नहर-ए-नदामत बहर-ए-रहमत का
ग़नी है दिल भरा है ने'मत-ए-कौनैन से दामन
गदा हूँ मैं फ़क़ीर-ए-आस्तान-ए-ख़ुद बदौलत का
इलाही बा'द-ए-मुर्दन पर्दा-हा-ए-हाइल उठ जाएँ
उजाला मेरे मरक़द में हो उन की शम'-ए-क़ुर्बत का
सुना है रोज़-ए-महशर आप ही का मुँह तकेंगे सब
कहाँ पूरा हुआ मतलब दिल-ए-मुश्ताक़-ए-रूयत का
हमें भी याद रखना सकिनान-ए-कूचा-ए-जानाँ
सलाम-ए-शौक़ पहुँचे बे-कसान-ए-दस्त-ए-ग़ुर्बत का
'हसन' सरकार-ए-तैबा का 'अजब दरबार-ए-'आली है
दर-ए-दौलत पे इक मेला लगा है अहल-ए-हाजत का
- पुस्तक : नात के चन्द शोरा-ए-मोतक़ीदीन (पृष्ठ 114)
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